गोर्वधन पूजा से पहले ब्रजवासी भगवान इंद्र की पूजा करते थें

सिंकदरपुर बलिया (विनोद कुमार)।दिवाली के बाद गोवर्धन पूजा की जाती है। लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। भारतीय लोक जीवन में इस पर्व का बहुत महत्व है। इस पर्व में मनुष्य का प्रकृति से सीधा संबंध दिखाई देता है। इस त्योहार की अपनी मान्यता और लोककथा है। गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गाय की पूजा की जाती है।गोवर्धन पूजा का सीधा संबंध भगवान कृष्ण से है। कहा जाता है कि इस त्योहार की शुरुआत द्वापर युग में हुई थी। हिंदू मान्यता के अनुसार गोर्वधन पूजा से पहले ब्रजवासी भगवान इंद्र की पूजा करते थें। मगर, भगवान कृष्ण के कहने पर एक वर्ष ब्रजवासियों ने गाय की पजूा की और गाय के गोबर का पहाड़ बनाकर उसकी परिक्रमा की। तब से हर वर्ष ऐसा किया जाने लगा।जब ब्रजवासियों ने भगवान इंद्र की पूजा करनी बंद कर दी तो वो इस बात से नाराज हो गए और उन्होंने ब्रजवासियों का डराने के लिए पूरे ब्रज को बारिश के पानी में जलमग्न कर दिया।लोग के प्राण बचाने के लिए भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों को बचाने के लिए पूरा गोवर्धन पर्वत अपनी एक उंगली पर उठा लिया। लगातार 7 दिन तक भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों को उसी गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण देकर उनके प्राणों की रक्षा की। भगवान ब्रह्मा ने जब इंद्र को बताया कि भगवान कृष्ण विष्णु का अवतार हैं तो इस बात को जानकर इंद्र बहुत पछताए और उन्होंने भगवान से क्षमा मांगी। इंद्र का क्रोध खत्म होते ही भगवान कृष्ण ने सातवें दिन गोवर्धन पर्वत नीचे रखकर ब्रजवासियो से आज्ञा दी कि अब से प्रतिवर्ष वह इस पर्वत की पूजा करेंगे और अन्नकूट का उन्हें भोग लगाएंगें। तब से लेकर आज तक गोवर्धन पूजा और अन्नकूट हर घर में मनाया जाता है।

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